حسين! حسين! (يكون أسامة في أثناء ذلك واقفا يتردد، يريد القرب من ابنته، ثم لما يراها بين ذراعي زوجها يحجم، ولكنها في أثناء العناق ترى أباها فتبتعد عن حسين، وتذهب إليه)
أبي! أبي!
أسامة (بصوت مختنق بالعبرات) :
ابنتي! (يتقدم منها ويحتضنها)
أميم! أميم! لقد ظفرت بمناي وثأرت لنفسي. (هنا يدخل أبو علي وبعض الجند، وتدخل ريطة من حيث خرجت.)
ريطة (من جانب) :
مرحى! مرحى!
أبو على (من جانب) :
مرحى! مرحى!
البدوية :
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