Дар стремящихся к переводу Имама ан-Навави
تحفة الطالبين في ترجمة الإمام النووي
Издатель
الدار الأثرية
Номер издания
الأولى
Год публикации
١٤٢٨ هـ - ٢٠٠٧ م
Место издания
عمان - الأردن
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Дар стремящихся к переводу Имама ан-Навави
Ибн Каттар d. 724 AHتحفة الطالبين في ترجمة الإمام النووي
Издатель
الدار الأثرية
Номер издания
الأولى
Год публикации
١٤٢٨ هـ - ٢٠٠٧ م
Место издания
عمان - الأردن
= في نفس القلم المغصوب، فيكون ملكًا لصاحب القلم لا لصاحب الشجرة، فيبقى بيعه وشراؤه حرامًا". انتهى. انظر: "ترجمة الإمام النووي" (ص ٣٧)، و"المنهاج السوي" (ص ٤٦)، و"تذكرة الحفاظ" (٤/ ١٤٧٢)، و"ذيل مرآة الزمان" (٣/ ٢٨٨)، و"عيون التواريخ" (٢١/ ١٦٢ - ١٦٤). وما نقل من تعليل فإنه من الورع الدقيق عند الإمام النووي، والمعتاد في (الغوطة) والبلاد كثيرة الأشجار السماح بأعواد التطعيم هبةً أو إهداءً، والتقليم أنفع للشجر، وقل أن يوجد بين الناس من يكره ذلك. (١) عبارة صوفية، مأخوذة من (المكاشفة)، وهي تطلق بإزاء تحقيق زيادة الحال، وتطلق بإزاء تحقيق الإشارة، كذا في "المصطلح الصوفي" (١٤٠) لابن عربي! وانظر "رشح الزلال" للكاشاني (١٢٠). (٢) انظر ترجمته في: "البداية والنهاية" (١٣/ ٢٨٢)، و"فوات الوفيات" (٣/ ٣٠١)، و"شذرات الذهب" (٥/ ٣٥٩). (٣) انظر: "تاريخ الإسلام" (ورقة ٥٧٧)، و"ترجمة الإمام النووي" (ص ٣٦)، و"المنهاج السوي" (ص ٤٧).
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