Жемчужно-насаженные образцы, не имеющие возможности прослеживания или ложное происхождение

Абу аль-Махасин аль-Кавкаджи d. 1305 AH
129

Жемчужно-насаженные образцы, не имеющие возможности прослеживания или ложное происхождение

اللؤلؤ المرصوع فيما لا أصل له أو بأصله موضوع

Исследователь

فواز أحمد زمرلي

Издатель

دار البشائر الإسلامية

Номер издания

الأولى

Год публикации

1415 AH

Место издания

بيروت

محاجر عَيْنَيْهِ - أَي: حدقته - فَشَربته، فورثت علم الْأَوليين والآخرين. ذكره عَليّ بن أبي طَالب. قَالَ النَّوَوِيّ: لَا يَصح. ٤٤١ - وَكَذَا مَا ذكره الشِّيعَة من: أَنه - أَي: عليا ﵁ شرب من مَاء اجْتمع فِي سرته ﵇ عِنْد غسله فَلم يطلّ شَاربه. قَالُوا: وَنحن مَا نقص شواربنا اقْتِدَاء بِهِ، قَالَ عَليّ قاري: وَهَذَا كَلَام بَاطِل أصلا وفرعا. ٤٤٢ - حَدِيث: لهدم الْكَعْبَة حجرا حجرا أَهْون من قتل الْمُسلم. لم يرد بِهَذَا اللَّفْظ. ٤٤٣ - نعم ورد: من آذَى مُسلما بِغَيْر حق، فَكَأَنَّمَا هدم بَيت الله. ٤٤٤ - حَدِيث: لَو حدثتكم بفضائل عمَر عمْرَ نوح فِي قومه، مَا فنيت، وَإِن عمر حَسَنَة من حَسَنَات أبي بكر. مَوْضُوع. ٤٤٥ - حَدِيث: لَو حسن أحدكُم ظَنّه بِحجر لنفعه الله بِهِ. مَوْضُوع، كَمَا قَالَه ابْن تَيْمِية. وَقَالَ ابْن الْجَوْزِيّ: هُوَ من كَلَام عباد الْأَصْنَام.

1 / 150